

लेखक : राजेश गोदारा क्षेत्रीय अधिकारी कृभको सूरतगढ़
आज के युग में हम देख रहे हैं कि किसान भी प्रगति की राह पर बड़ी ही तेजी से आगे बढ़ रहा है। क्योंकि एक कहावत के रूप में कहा जाए कि आज का किसान लैपटॉप लेकर खेतों तक जाता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। किसान मौसम की जानकारी, बाजार के भाव, बाजार की स्थिति, अपने क्षेत्र में उर्वरकों का स्टॉक, पेस्टिसाइड की काम में ली जाने वाली मात्रा, फसलों में लगने वाली बीमारियां और उनका बचाव, उन्नत बीज और उनके उपलब्धता आदि के बारे में अपने एंड्रॉयड फोन के माध्यम से घर बैठे ही जानकारी प्राप्त कर भी रहा है। क्योंकि यदि हम देखें पिछले एक-दो दिनों में हो रही मौसम की खराबी से किसान यह अंदाजा लगा रहा है। यदि हम देखें किसान ऑनलाइन शॉपिंग के माध्यम से घर बैठे ही रासायनिक दवाओं की खरीदारी कर रहा है। अपने माल को ई-मार्केटिंग के जरिए बेच भी रहा है। यानी यदि हम कहें वैज्ञानिक और किसान के बीच में जो खाई थी वह आज काफी हद तक कम हो चुकी है। पहले के समय में वैज्ञानिकों को किसानों के खेत तक जाकर जानकारी देनी पड़ती थी। अब स्थित बदली है, आज वही प्रगतिशील किसान वैज्ञानिकों से आकर सवाल भी करने लगे हैं। यदि हम प्रगतिशील किसानों की ओर एक नजर उठाकर देखें तो वह आज की कृषि को उन्नत बनाने में एक सेतु का कार्य कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो एक गांव से एक प्रगतिशील किसान को प्रशिक्षित कर उसे एग्रीकल्चर की सभी तकनीकी जानकारियां प्रदान की जाए तो वह अपने आस-पड़ोस के खेतों में या गांव में आसपास के घरों में बदलाव ला सकता है। जो कि आईसीआर की एक परियोजना प्रयोगशाला से खेत तक को सार्थक करने में महत्वपूर्ण साबित होगा। इसके साथ-साथ हमारे जो किसान साथी कुछ बातें पूछने में संकोच करते हैं, वह भी उस प्रगतिशील किसान के माध्यम से अपनी संपूर्ण खेती की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। एक उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो हमारे क्षेत्र में लीची के बागवानी की चर्चाएं चल रही है। जो कि हमने प्रगतिशील किसानों के माध्यम से ही सुनी थी। हमने पता किया कि कौन से क्षेत्र में लीची की खेती की जा रही है। हम वहां जाकर उसकी जानकारी जुटाकर आए और आकर के अपने गांव में या अपने आस पड़ोस में सभी को उसके बारे में बताया। इसे आप जागृति का एक नया रूप ही कह सकते हैंl प्रसार शिक्षा के शोध के अनुसार केवल एक 1.5 प्रतिशत लोग प्रगतिशील प्रवृत्ति के होते हैं। किसी भी नवाचार को सर्वप्रथम वे लोग ही अपनाते हैं। उन्हीं के पीछे किसी नवाचार को आगे मंजिल तक पहुंचाया जा सकता है। यदि किसी नवाचार को किसान तक पहुंचना है तो सबसे उपयुक्त माध्यम प्रगतिशील किसान ही हो सकता है। वे किसान अपने बीच में उपस्थित किसी साथी के द्वारा किए गए शोध को ही प्रमाणिक मानते हैं। उन्हें आईसर की एक और कार्यक्रम ट्रेंनिंग एंड विजिट के आधार पर देखी गई तमाम गतिविधियों तथा शिवम की खेती के आधार पर अंतर को महसूस करते हुए उस नवाचार को अपनाता है। हमारे इस लेख का उद्देश्य है कि हम भी हमारे आसपास के परिवेश में किसानों को प्रगतिशील बनाने का कार्य करें। क्योंकि यदि किसान का विकास होगा तो ही देश का विकास होगा। हम मानते हैं कि वर्तमान में लागू हो रही नीतियां प्रभावी है। परंतु जब तक यह एक किसान के खेत तक नहीं पहुंचेगी तब तक हम इसकी उपयोगिता नहीं मान सकते है। साथ ही प्रगतिशील किसानों से भी आग्रह रहता है कि अपने आसपास के अनुसंधान केंद्रों पर उपस्थित वैज्ञानिकों से सम्पर्क स्थापित करें। ताकि वह भी एक उचित और उपयुक्त अनुसंधान को और बेहतर तरीके से किसानों की राय के आधार पर तथा उसमें आ रही कमियों को निकालते हुए बेहतर परिणाम वाला अनुसंधान कर सकें। जिससे किसानों का उनके प्रति विश्वास और अधिक बढ़ सके।

Pawan: Good knowledge...