

श्रीगंगानगर/किसान हित। कृषि अनुसंधान केन्द्र द्वारा कृषि विस्तारकर्त्ता एवं कृषकों के लिये कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक की जानकारी देने के लिये आज सुबह 11ः00 बजे से 01ः00 बजे तक कपास संवाद (ऑनलाईन) का आयोजन किया गया। इसमें श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ जिलें के कृषि अधिकारीगण एवं प्रगतिशील कृषकों सहित 75 लोगों ने भाग लिया। संयोजक डॉ. बी.एस. मीणा ने बताया कि ई-संवाद के शुरूआत में केन्द्र के क्षेत्रीय निदेशक अनुसंधान डॉ. यू.एस. शेखावत ने वर्तमान परिस्थितियों के मद्धेनजर कोविड-ं19 की दिशानिर्देशों की पालना करते हुये कृषि कार्य करने को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने क्षेत्र में नरमा कपास की हो रही बिजाई के समय कपास संवाद को समसामयिक एवं उपयोगी बताया। कपास संवाद में उपस्थित संयुक्त निदेशक कृषि आनंद स्वरूप छींपा ने कपास की बिजाई के संदर्भ में बताया कि बीटी कपास मध्यम व भारी भूमि उपयोगी रहती है। उन्होंन कृषि अधिकारियों व किसानों को सलाह दी कि बीटी नरमा की एक ही किस्म के उपयोग के स्थान पर सिफारिश की गई दो-ंतीन किस्मों के बीज को प्रयोग करने की सलाह दी। साथ ही उर्वरकों के बेसल प्रयोगों व रसचूसक कीटों के लिये बीज उपचार को उपयोगी बताया। संवाद को संबोधित करते हुये डॉ. पी.एल. नेहरा, कपास वैज्ञानिक एवं
सेवानिवृत्त निदेशक अनुसंधान, स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर ने कपास के अच्छे उत्पादन के लिये महत्वपूर्ण तकनीकों जैसे गहरी जुताई, उर्वरकों का बेसल प्रयोग, सिफारिश की गई।
दो-ंतीन किस्मों का प्रयोग, समय पर बिजाई एवं खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशियों को सिफारिश के अनुसार प्रयोग को आवश्यक बताया। संवाद में सहभागियों को संबोधित करते हुये केन्द्र के कीट वैज्ञानिक डॉ. रूपसिंह मीणा में नरमा-कपास में रसचूसक कीटों-ंहरा तेला, सफेद मक्खी, थ्रिप्स एवं मिलीबग के प्रकोप की चर्चा की तथा उनके समन्वित नियंत्रण के लिये नियमित निगरानी व समय पर सिफारिश की गई कीटनाशकों के छिड़काव की सलाह दी। उन्होंने शुरूआत में नीम आधारित कीटनाशकों के प्रयोग को उपयोगी बताया तथा मित्र कीटों के संरक्षण पर जोर दिया। डॉ. प्रदीप कुमार, पौध व्याधि विशेषज्ञ ने नरमा कपास में पत्ता मरोड़ बीमारी के लक्षणों तथा इसके कारकों जैसे खरपतवारों का पनपना आदि पर चर्चा की तथा रोग को प्रभारी तरीके नियंत्रण के लिये खेत के चारों तरफ व नहरों के दोनों ओर उगे खरपतवारों को समय-ंसमय पर नष्ट करना तथा सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिये सिफारिश के साथ कीटनाशी दवाओं के छिड़काव की सलाह दी। डॉ. एस.के. बिश्नाई, सहायक प्राध्यापक (पौध कार्यिकी) ने बीटी नरमा में पैराविल्ट रोग के कारकों पर चर्चा की व नियंत्रण के लिये खेत की नियमित देखभाल व कोबाल्ट क्लोराइड का 1.0 मिली. प्रति 100 लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव को उपयोगी बताया। इसके उपरांत संयोजक डॉ. बी.एस. मीणा ने संवाद में जुडे़ कृषि अधिकारियों व किसानों से उनके समस्याओं व फीडबैक पर चर्चा की तथा संबंधित वैज्ञानिकों ने उनकी आशंकाओं का समाधान किया। डॉ. जी.आर. मटोरिया, उपनिदेशक कृषि (विस्तार), श्रीगंगानगर व डॉ. बलवीर सिंह जांगिड़, सहायक निदेशक कृषि (विस्तार), नोहर आदि ने कपास संबंधी चर्चा में भाग लिया। संवाद में जुड़े कृषक दयाराम बेनीवाल व अन्य कृषकों ने संवाद को कपास किसानों के लिये उपयोगी पहल बताया। अंत में डॉ. बी.एस. मीणा ने सभी संवाद में प्रतिभागी सभी कृषि वैज्ञानिकों, कृषि अधिकारियों व किसानों को धन्यवाद ज्ञापित किया और आशा व्यक्त कि केन्द्र की इस ऑनलाईन प्लेटफार्म के माध्यम से कपास के सभी स्टेकहाल्डर एक मंच पर लाकर तकनीकी विचार-ंविमर्श उपयोगी रहा।

Pawan: Good knowledge...